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Aradhana Kushwaha

Abstract

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Aradhana Kushwaha

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बेकल मन

बेकल मन

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आज बेकल उठ चला मन दौड़ने को

छोड़कर उन रस्मों -रिवाजों कों


उड़ चला अब देखने को इस निरस संसार को

कह रहा क्यों रहे पीछे इन पंछियों के झुण्ड में


खोल पंख अब दूर तक भरने को तु उड़ाने

देखते ही रह जाए इन पंछियों के ठिकाने


देख बर्बर दुनियाँ को भी तू अपने इन आँखों से

देख कैसे बेबस पड़ा हैं खुद से यह लाचार हैं


देख कैसे है खड़े सब स्वार्थ का झोला लिये

आज बेकल उठ चला मन दौड़ने को। 


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