कुछ कुरितियों को मिटाया जाए
कुछ कुरितियों को मिटाया जाए
सदैव ही कितनी नजरों से घिरी रहती है ll
फिर भी, क्यो असुरक्षित स्त्री रहती है ।।
कभी घर कभी बाहर वालों की नज़र मे रहती है
फिर भी क्यो खुद को सुरक्षित महसूस नही कर पाती है।
स्त्री पुरुष दोनो ही है ईश्वर की सर्वोच्च रचना
फिर भी क्यो स्त्री तिरस्कार ही पाती है।
ईंट पत्थर के मकान को वो ही तो घर बनाती है
फिर भी क्यो स्त्री उस घर के लिए पराई ही कहलाती है।
दे जन्म औलाद को छाती से अपने दूध पिलाती है
फिर भी क्यो उस औलाद को अपना नाम नही दे पाती है।
जिस पुरुष समाज की जन्मदाती वो कहलाती है
क्यो उसी के द्वारा उसकी अस्मत रौंद दी जाती है।
वो भी है हाड़ मास की एक जानदार इंसान
ये बात क्यो कुछ लोगो को समझ नही आती है।।
चलो एक समाज़ अब ऐसा बनाया जाए
स्त्री पुरुष का जिसमे भेद ही मिटाया जाए।
सिर्फ बातो या किताबों मे ही नही केवल
हकीकत मे स्त्री को बराबर लाया जाए।
स्त्री को भी पुरुष सामान मिले इंसान का दर्जा
देवी का दे दर्जा उसे ना बरगलाया जाए।
जिस औलाद को देती वो जन्म मौत के मुंह मे जा
उस औलाद के नाम के साथ उसका ही नाम लगाया जाए।
जिस मकान को बनाया घर उसने दिलो जान से
उसकी तख्ती पर नाम उसका भी लिखाया जाए।
जो हाथ् उठे उसकी तरफ रोंदने को अस्मत उसकी
उन हाथों को धड़ से उनके अलग कर दिया जाए।
यूँ स्त्री के लिए घर और समाज को सुरक्षित बनाया जाए
कुछ कुरीतियो को हमारे इस समाज से मिटाया जाए।