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Sangeeta Aggarwal

Children Stories Others

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Sangeeta Aggarwal

Children Stories Others

वो स्कूल का जमाना।

वो स्कूल का जमाना।

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वो भी क्या दिन थे जब हम बच्चे थे 

नटखट भले थे फिर भी सच्चे थे।

सुबह सुबह वो स्कूल की भागदौड़ 

वो सौंधा सौंधा अचार और परांठे का दौर।

कक्षा में हमेशा प्रथम आने की थी होड़

दिन रात होती थी मेहनत हाड़ तोड़।

अध्यापिका की आँख के हम तारे थे

कक्षा के विद्यार्थी जो हम प्यारे थे।

हर प्रतियोगिता में बढ़ चढ़कर भाग लेना

ना जीतने पर वो छुप छुप कर रोना

जीत जाने की खुशी ही अलग थी

वो स्कूल के समय की जिंदगी ही अलग थी।

भले व्यस्त थे फिर भी खुद के लिए जीते थे

जब यूँ ही पढ़ते पढ़ते तितलियों के पीछे हो लेते थे।

कागज़ की कश्तियाँ भी तो पानी में तैराते थे

बारिश के पानी में जी भर कर नहाते थे।

बस्ते का बोझ भले तब बहुत भारी था

हर पीरियड एहसास कराता था जिम्मेदारी का

पर तब भी हम कितने मस्तमौला , बेफिक्र थे 

वो स्कूल के जमाने भी कितने गजब थे।

पल में रूठ जाते पल में ही मनाते थे

सखी सहेलियों पर कितना प्यार लुटाते थे 

कट्टी , अब्बा तो रोज लब पर होती थी

सहेलियों से दूरी भी सहन कहाँ होती थी।

अब तो ना वो स्कूल , ना वो बस्ता ना सहेली है।

जिंदगी भी हर घड़ी एक नई पहेली है।

क्यों वक़्त की धूल में सब कुछ हमसे खो गया

क्यों वो विद्यार्थी जीवन हमसे जुदा हो गया।

अब तो जिंदगी का पाठ नित पढ़ते है 

और हर दिन जिंदगी के लिए जद्दोजहद करते है।

इतने साल में बस इतना ही हमने जाना है 

कितने मासूम थे हम जब तक हम बच्चे थे।

टूटे सपनों से ज्यादा टूटे खिलौने ही अच्छे थे।


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