आँखें खुलीं तो ऊँ आँ की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी थी आँखें खुलीं तो ऊँ आँ की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी थी
हमेशा मुझे फूल की तरह खिलना सिखाती। उसे सहेली कहूं या मां। हमेशा मुझे फूल की तरह खिलना सिखाती। उसे सहेली कहूं या मां।
फिर कुछ ख्वाब सोच कर मैं मन ही मन मुस्कायो फिर कुछ ख्वाब सोच कर मैं मन ही मन मुस्कायो