मेरी बेटी...
मेरी बेटी...
मेरी बेटी...मेरी ख़ुशी की माँ
मैं उस दिन बनी थी
जब बन्द कमरे में उसकी धड़कन
मेरे कानों में पड़ी थी...
आँखें खुलीं तो ऊँ आँ की आवाज़
मेरे कानों में पड़ी थी...
एक प्यारी सी बेटी
मेरी बाँहों में लेटी थी...
मेरी ही उँगली पकड़ते
वो लड़खड़ाते चली थी...
अब मेरे काँधे से ऊपर
उड़ने को आसमान में
तैयार खड़ी थी...
फ़िर मेरी बेटी...मेरी ख़ुशी
मेरी सहेली बनी थी
मेरी बातों से हैरान,
मेरे आँसुओं से परेशान
मुझे हिम्मत देने वो खड़ी थी...
मेरी तरफ़ उठने वाले हर सवाल
हर नज़र से वो लड़ी थी...
मेरे कुछ कर दिखाने की....
ज़िद्द पर वो अड़ी थी
फ़िर मेरी बेटी...मेरी ख़ुशी
मेरी ज़िन्दगी बनी थी
मानो मेरे जीने की वजह
वो ही तो बनी थी...
मेरी बेटी...मेरी ख़ुशी....
