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Pallavi Raj

Others

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Pallavi Raj

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महल

महल

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ये जो महल तुमने मेरे लिए बनवाया है

पता नहीं क्यों

मुझे मुझ सा नहीं लगता

ये मेरे ख़्वाबों के घर सा नहीं लगता


इसके बड़े-बड़े कमरों

और ऊँची ऊँची दीवारों में

मैं कहीं ख़ो न जाऊँ

जाने क्यों मुझे यह डर सा लगता है


बड़े महलों के पीछे की कहानियाँ

मुझे अक़्सर डरातीं हैं

इन किस्सों और कहानियों में

मैं कहीं खो न जाऊँ

जाने क्यों मुझे यह डर सा लगता है


महलों के अंदर अक़्सर मैंने

रानियों को तड़पते देखा है

उनके पैरों में पड़ी

अदृश्य बेड़ियों को देखा है

उनके ख़्वाबों को 

हवा में उड़ते देखा है

वो पीछे वाले आँगन में

बिखरे उन ख़्वाबों को समेटने में

मैं कहीं ख़ो न जाऊँ

जाने क्यों मुझे यह डर सा लगता है


जाने क्यों....

ये महल जो तुमने मेरे लिए बनवाया है

मुझे मेरे घर सा नहीं लगता.....



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