जुगनू
जुगनू
जुगनू बन कर स्वयं, चलना चीर तुम अंधेरों को,
जुगनू कभी भी रोशनी के मोहताज नहीं होते।
हो जाए हौसले पस्त, तो याद रखना एक ही बात,
बिन मेहनत के हासिल तख़्त-ओ-ताज नहीं होते।
राह पर चलते मुसाफिरों को हमराह न समझना,
सब साथ चलने वाले सदा शुभ चिंतक नहीं होते।
अपनी राह ख़ुद चलो, अपनी मंजिल को ख़ुद पाओ,
याद रखना, मुसीबत में मुसाफिर साथ नहीं होते।
कूद पड़े समंदर में तो, सुनामी से फिर क्यूँ डरना,
लहरों से हारने वालों को कभी साहिल नहीं मिलता।
कुछ करने निकले हो अगर, हारने से कभी
न डरना,
हार से डरने वालों को, जीत का स्वाद नहीं मिलता।
कर्म छोड़ धर्म अपनाने वाले, विश्वकर्मा न कहलाते,
कर्म न करते विश्वकर्मा, तो ब्रह्माण्ड कैसे बना पाते?
धर्म का धंधा करने वालों का, कर्म से कहाँ कोई नाता,
कर्म के संग धर्म जो करते, असली ज्ञानी वही कहलाते।
बन कर जुगनू आज स्वयं के, औरों को भी राह दिखाना,
निकल पड़े हो सफर पर जब, बाधाओं से क्या घबराना।
क्या हुआ जो हो अकेले, ख़ुद का साथ तुम ख़ुद ही निभाना,
अकेले आए हो, अकेले जाओगे, ख़ुद के जुगनू बन जाना।