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किसान का दर्द

किसान का दर्द

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बदल गया है फ़ैशन सारा

बदल गया दुनिया का हाल

बदला नहीं किसान देश का

अब भी बेचारा बदहाल !


व्यवस्था का ज़ुल्मों-सितम

क़ुदरत का क़हर पी रहा

देखो मेरा अन्नदाता

ख़ुद ज़हर पी रहा


बिलखती है ख़ामोशी

चीख़ता है सन्नाटा

पालनकर्ता माँग रहा है

दो रोटी का आटा


झेलता ही आया

हरदम दोहरी फटकार

एक बादल नहीं बरसता

दूजा बरसता है साहूकार


देखो क़र्ज़ तले दबी

एक आत्मा मर रही है

भरी चौपाल में उसकी

पगड़ी उतर रही है


कलिकाल का महातमाचा

लगा मुझे हँसी आई,

बीस रुपये का चैक देखकर

उसकी आँखें भर आई


अनब्याही बेटी ने

दर्द शूल - सा दिया है

वो आज उसी की चुनरी से

पंखे पर झूल गया है...!




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