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varuni churiwal

Drama

4  

varuni churiwal

Drama

रात के वो पल

रात के वो पल

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क्यों अंधेरे के साथ ही मैं अपने भी कुछ रंग खो देती हूँ ?

क्यों सूरज की किरणों के संग,

अपना भी कुछ प्रकाश खो देती हूँ ?

क्यों पलकें सुस्तियाँ लेते ही और भी खुल जाती हैं ?

क्यों चांदनी तले मेरे मुस्कान भी दफ़न हो जाते है ?


ये निशा है या नशा है ?

इन अनुभूतियों की क्या दशा है ?

बीते लम्हों का नशा, दबे तम्मानाओ का खफा,

गुम-सुम से वो लफ्ज जो आजाद होना चाहते हैं,

उन तारों से गुफ्तगू करते-करते अंदर ही तरप जाते हैं।


नहीं! मैं उदास नहीं हूं, उजालो में रंगो से भरी ही रहती हूँ,

कभी थोड़ी हताश जरूर, 

पर बेचैनी से आगे भी बढ़ती हूँ।

पर न जाने क्यों ये तारें उन चाहतों को खींचती रहती हैं,

और एहसास दिलाती हैं की आजकल कुछ खोई सी रहती हूँ।


वो सदियों पुराने वादें, उस गत प्रेमी की बीते यादें,

वो सदियों पुराने नातें,फिर से बहे चले आते।


और इन्हीं रातों में कुछ सहमी सी रहती हूँ,

 खेद और भूल की सुधार की खोज में 

तरस सी जाती हूँ।

 

और इन्ही यादों की आहट नींद को हरा देती है,

ना जाने किन-किन कोनों से लुका-छुपी खेलती ही रहती है।

ये ही चाहतें अंदर घुल कर घूँट बन जाती है,

और एक बार फिर रोशनी के साथ,

होंठों की जगह आंखों से निकल,

 न जाने कहां धुआं-धुआं हो जाती है।


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