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Anita Sharma

Drama Romance

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Anita Sharma

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धूप

धूप

1 min
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सूर्योदय से सूर्यास्त तक

जो मेरे मन में द्वेष बढ़ाते

रोज़ उठती कंटीली जिज्ञासाओं से

मेरे मनोभाव लहूलुहान हो जाते

हिय विचलित सा घूमा करता

पल में कितने मौसम बदल जाते

जब मेरे हिस्से की खुशियों को

ये कोलाहल अंधेरों में गुम कर देता

तब तुम आकर मेरे मन आँगन

शीत सा हौसले का सूर्य उगाते

और अंजुली भर छनी हुई

मेरे हिस्से की सुनहली धूप फैलाते

दिल के आँगन ये स्वर्ण सी किरणें 

बिखर जाती जब हर कोने में

मेरे भ्रम के छालों पर हौले हौले तुम

बिखरी कनकाभ का लेप लगाते

सहना पड़े कितना भी तुमको

तुम मेरी खातिर सब सह जाते

हर मौसम से लड़कर

कंपकंपाते...ज़मींदोज़ होते…!

जलते...झुलसते...भीगते...कसमसाते!

फिर भी कभी भूले नहीं तुम…!

मेरे हिस्से की वो अंजुली भर धूप,

जो अलसुबह नित...चढ़ आती है,

हर मौसम में स्पर्श कर रूह तक,

तुम्हारा…!आभास कराती है,

समझते हो ना तुम?

कोई कंपकंपी, पतझड़ी, तपन, बरखा,

किसी भी रूप में, हावी नहीं हो पाती,

आखिर वही अंजुली भर जो धूप है,

मेरे अनंत खुशियों का ही तो कूप है,

बदलते लाख मौसम

बस...तुम न बदलना!

मेरे हिस्से की अंजुली भर धूप लेकर,

कदम मिलाकर यूँ ही साथ चलना!



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