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Gautam Sagar

Drama Tragedy

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Gautam Sagar

Drama Tragedy

कोख में मार दी गयी बच्ची

कोख में मार दी गयी बच्ची

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कोख में मार दी गयी बच्ची

न कोई गवाह, न कोई सुबूत

न अर्थी सजी, न तेरहवां मना।


पिता ने राहत की साँस ली

जैसे एक पहाड़ का बोझ

सिर पर आने से पूर्व उतर गया हो।


माँ अधमरी-सी है......

डाक्टरों ने कहा है- “सब ठीक है।”

फी के साथ मिठाई की मांग की जा रही है।


दादा-दादी को तनिक नहीं है

भगजोगिनी-सी चमकनेवाली कन्या के वध

का अपराधबोध

वे आस लगायें बैठे हैं- कुलदीपक का।


कोख में मार दी गयी बच्ची

कोख एक ऐसी जगह है

जहाँ तहकीकात को नहीं पहुँच सकती पुलिस


और ऐसे मृतक को कौन पहचानेगा

जिसका चेहरा भी किसी ने नहीं देखा।


तेजाबी दवाओं के घोल में

रुई के फाहे-सी आकार लेती लक्ष्मीबाई,

राधा, मीरा, मदर टेरेसा, कल्पना चावला

घुल गयी, गल गयी

माँ की कोख में।


कोख की कोठरी से उसकी चीख

बेहोश माँ भी न सुन सकी

उसने आखिरी बार साँस ली

माँ की कोख में


आखिरी बार बिना स्वर और शब्द ‘माँ’ को

पुकारा और चल बसी।


कोख में पल रही बच्ची के अविकसित देह की

मुलायम मिट्टी का घड़ा कोड़

उड़ गयी उजली आत्मा

अपनी मरी बहनों के पास....।


इस दुनिया में इस बच्ची की कोई तस्वीर नहीं

सिवाय अल्ट्रासाउंड की प्रति लिपि के अलावे,


होश में आने पर,

माँ अपने सिकुड़े पेट को छूती है

जैसे यह कब्र हो

जहाँ उसकी कई बच्चियां दफना दी गयी हैं।


उसका पति छूता है अपनी पत्नी का पेट

एक उर्वर भूमि की तरह जहाँ से उगने वाला,

है उसका वंशबेल .....उसका कुल दीपक।



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