आदमी आँखों से कहाँ देखता है
आदमी आँखों से कहाँ देखता है


आदमी आँखों से कहाँ देखता है
आदमी विचारों के चश्मे से देखता है
और हर आदमी के पास
कई तरह के विचार है
कई तरह के चश्में है
एक ही पीपल के पत्ते में
कोई हृदय की आकृति देखता है
कोई रौंद कर आगे बढ़ा जाता है
कोई उस पर पैंटिंग बनाता है
कोई उस पर कविता लिखता है
कोई उसे अपने बकरी के लिए
उठा लेता है
कोई उसे प्रयोगशाला में
पादप विज्ञान जानने में
प्रयोग करता है
यह तो एक मामूली पत्ते की बात थी
सोचो
पूरी प्रकृति को कितने चश्मों से
देखा जाता होगा
कोई नदी में पानी देखता होगा
कोई नदी में बिकने वाला बालू देखता होगा
कोई नदी में जीवन देखता होगा
कोई नदी को मौत का पर्याय मानता होगा
कोई नदी में प्यार देखता है
कोई नदी में व्यापार देखता है
आदमी आँखों से कहाँ देखता है
आदमी विचारों के चश्मे से देखता है
और हर आदमी के पास
कई तरह के विचार है
कई तरह के चश्में है