STORYMIRROR

Dipti Agarwal

Drama

4  

Dipti Agarwal

Drama

इत्तफ़ाक़

इत्तफ़ाक़

1 min
155

उस तपती सी रेत के समुन्दर में 

यूँ ही बरस पड़ती पानी की कुछ बूँदें,

उस कड़कड़ाती ठण्ड में धुंधले बुझे 

बादलों को चीर गिरती नर्म सूरज की किरणें,


उस अँधेरे से रास्ते में दूर 

टिमटिमाती एक दीये की रौशनी,

उस खाली सूने जंगल में यूँ ही रूबरू हो जाये 

मनचले खानाबदोशों की बस्ती,


उस तसब्बुर के महल से आ निकले 

कुछ किरदार सामने टहलाते हुए,

उस अतीत के कारवां की सैर में 

फिर से कुछ पल गुजरे,


वो बिन मौसम की बारिश,

वो महबूब की मस्ती भरी साज़िश,

वो हाथ अचानक हाथ से टकरा जाना,

वो भीगा गीला दुपट्टा उड़के 

सामने की छत्त पर फेहरा जाना,


वो उड़ते परिंदो के पंख का एक 

कतरा पलकों पे आ गिरना,

वो तीखे पकोड़ों से जलती ज़ुबान के सामने 

आ जाये ठंडा बर्फ का झड़ना,


वो डूबे चाँद की रात में हाथ लगे 

जगमगताते जुगनुओं का गुच्छा,

वो दिन भर की थकान से टूटे बदन को 

मिले गर्म चाय की चुस्कियां,


है तो मुख़्तसिर से 

पर जीवन का सच बताते हैं,

यही छोटे छोटे इत्तफ़ाक़ ही तो 

जीने का फलसफा सिखलाते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama