कुछ पुराना हिसाब ज़िन्दगी से
कुछ पुराना हिसाब ज़िन्दगी से
ये यूँ ही इतेफ़ाक़ नहीं हो सकता
कुछ तो पुराना हिसाब बाकी है तुझसे
ज़िंदगी,
मैं हर मर्तबाह बड़ी मुशक्कत से,
ज़ख़्मी पड़े सीने से तेरी चोट दिए
नुकीले खंजरों को निकाल कर,
काफ़ी एहतियात बरते
उन पे टाँके लगा पट्टियाँ लगा,
वापस ताज़ा कर फिर
जीने को तैयार करता हूँ,
तभी दबे पाओं धीमे से पीछे से आके फिर से,
उन्हे छन्नी कर लहू लुहन कर देती है तू
और बेचारा बेकसूर दिल फिर
तड़प तड़प के छटपटाता गिर जाता है,
ये यूँ ही इतफ़ाक़ नहीं हो सकता
कुछ तो पुराना हिसाब बाकी है तुझसे ज़िंदगी।
