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राही अंजाना

Drama

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राही अंजाना

Drama

मेरे पापा

मेरे पापा

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उछाल उछाल कर पापा मुझे दिल्ली दिखाते थे,

हंस हंस कर पापा को मैं खूब रिझाती थी, 


भरोसे का अटूट रिश्ता था हमारा,

छूटकर हाथों से मैं फिर हाथो में आ जाती थी,

आज पापा मुझको हाथों में उठा नहीं पाते, 


उछाल कर मुझको वो दिल्ली दिखा नहीं पाते,

उछलकर देखती हूँ मैं खुद पर मुझे कोई दिल्ली नहीं दिखता,


होठों पर हंसी का अब कोई गुव्वारा नहीं फूटता, 

सोंचती हूँ पापा मुझे कैसे उड़ाते थे,


कैसे मेरी आँखों को वो दिल्ली दिखाते थे, 

मैं फूले ना समाती थी हंस हंस कर रो जाती थी, 


काश हो जाऊँ मैं फिर एक बार छोटी,

बन जाऊँ फिर पापा की वो प्यारी सी बेटी, 


छू लू फिर आसमाँ पापा के हाथों से उछलकर,

देख लूँ एक बार फिर मैं अपने बचपन की दिल्ली।


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