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Priyanka Gupta

Abstract Drama Others

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Priyanka Gupta

Abstract Drama Others

कश्मकश

कश्मकश

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हम दो पल के जीवन में सपने सजा के

ख्वाहिश गगन की किए जा रहे है

यही सारे पल है यही पर दो कश ले

कहाँ जाएंगे फिर यही कशमकश है


कांधों पे अपने हम तुमको बिठा के

जगत को ही निर्बल किए जा रहे है

सुभगता को तुम MERI सुविधा समझते

हम जीते या हारे यही कशमकश है


मुखौटों से वैसे हम डरते डराते

अब खुद भी मुखौटा हुए जा रहे है

वो संगी बैरंगी हुए थे जो अपने

अब किसे अपना माने यही कशमकश है


कश्ती मेरी समंदर से बिगड़ा करे

हम किनारे पे पहरा दिए जा रहे है

पर अल्हड़ से मन में जो सपने भर आए

वो कैसे बहलाए यही कशमकश है


है शिकायत जो सबको क्या लेखा करे

हम दफाओं की सूची लिखे जा रहे है

आलोचक भी निज के हम निज में समाए

चुप रहे या ये कह दे ये भी कशमकश है


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