अयोध्या
अयोध्या
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राम का पलना था वो या, मेहराब से सजी दीवार,
वो धम्मा बुद्ध का भी घर था, ऐसा भी एक विचार।
सबने भूमी का मान रखा, अल्लाह,बुद्ध, भगवान्,
इंसान ज़मीं पे आया, उसने फूँक दिए मकान।
क्या भव्य नज़ारा होगा वो, मंदिर मस्जिद एक तुम्ब,
अज़ान की आवाज़ें भीतर, बाहर आरत दे कुटुंब।
तुलसीदास ने साक्ष्य किया, या बाबर ने बनवाया,
उस भूमी ने बस, शक्ति का मूल सदा दर्शाया।
राम जन्म से राम राज्य तक, मृदु छवि दर्शाकर,
मुहम्मद ने इस्लाम रचा, दया बिम्ब छलकाकर।
उस शिक्षा और तालीम को जब व्यावहारिक होना था ,
अवधपुरी में सराबोर एक भू विवाद गहरा था।
भौतिकता ने स्वांग रचा, रंग अनूठे छोड़े,
राम लला शिविर में फिर, अल्लाह की चादर ओढ़े।
पुरातत्व ने दांव दिए, ग्रन्थ फिर पढ़वाए,
अतिक्रमी स्थल किसका, ये गणन सभी लगवाए।
कोलाहल थी यहाँ, ऊपर सब मुस्का रहे थे ,
मति जो बिगड़ी थी उसके गुजरने को रुके थे।
लौट के आयी साथ में शक्ति, फिर अवध के तट पे,
उस भूमी पर फिर राम लला, और अल्लाह वही निकट में।