किसने कहा था
किसने कहा था
किसने कहा था कि,
हम, तुम्हारी हर बात मान लेंगे।
किनारों पर बसी हुई, अपनी बस्ती,
बस तुम्हारे लिए, उसको उजाड़ देंगे।
हाँ, ये सच है कि सपने कम हैं मेरे,
और सपनों में भी, अपने कम हैं मेरे।
पर, कुछ सपने तो हम भी पाले हुए हैं,
जो भी हैं अपने, वो भी ख्वाब पाले हुए हैं।
तुम्हें जाना है तो चले जाओ, मैं रोकूंगा नहीं,
जाते वक़्त तुम्हें, मैं टोकूंगा भी नहीं।
ऐसा नहीं है, कि तुमसे बिछड़ने का गम नहीं है मुझे,
पर मैं भी तो चाहता हूँ, कोई मेरे दिल की भी तो सुने।
जज्बात तुम्हारे हैं तो, कुछ मेरे भी तो हैं ना,
दर्द तुम्हें भी है, तो तड़प मुझे भी तो है ना।
आसां ना तो तुम्हारे लिए है, और ना मेरे लिये ही।
अब चुनना तुम्हें भी है, और कुछ मुझे अपनों के लिये भी।
वैसे अभी भी एक होने में, कोई पाबंदी नहीं है।
पर अब जिदों को साथ रहना, मेरी पसंद नहीं है।।