STORYMIRROR

Vipin Kumar 'Prakrat'

Others

4  

Vipin Kumar 'Prakrat'

Others

अब सब बताना चाहता हूँ

अब सब बताना चाहता हूँ

1 min
284

ये दिन बहुत तकलीफ़ देते, हर शाम मेरी भोर होती।

अब थक चुका हूँ बोझ ढोकर, अब रीढ़ मेरी दर्द देती।

मैं टूटता उस आइने सा, टुकड़े कलेजा चीर देते।

खुद ही बिखरकर और संभलकर, फिर से सफ़र में चल निकलते ।

हारा नहीं पर थक चुका हूँ, जीता नहीं पर जीतता हूँ।

कोई आये अब स्पर्श करने, इस दर्द से मैं चीखता हूँ।

आँसुओं से अपने बदन को, अब भिगोना चाहता हूँ।

कोई आये और पूछे, अब सब बताना चाहता हूँ।


मैं हूँ दरिया पर कोई कश्ती, जाने को राज़ी नहीं है।

मैं अकेला स्तब्ध हूँ, अब यहाँ कोई मांझी नहीं है।

भीड़ होती है शुरू में, पर पार उतरे सब अकेले,

चलते हैं मिलते मिलाते, पर रात में ठहरे अकेले।

थपकियाँ देकर सुला दे, मैं नींद जी भर चाहता हूँ।

जिस रात मेरी बात हो, हर बात कहना चाहता हूँ।

हर समंदर पार करके, अब पार जाना चाहता हूँ,

कोई आकर पूछ ले, अब सब बताना चाहता हूँ।


भोर ऐसी हो जहाँ पर, जी उठूँ फिर से धरा पर।

तन उल्लासित, मन प्रफुल्लित, चेतना हो सब वहाँ पर।

ताजगी से मैं भरूँ, जैसे हवा कोई बह रही हो।

स्वछंद मेघों से लिपटकर, मानो कहानी कह रही हो।

अब आग, जल की मध्यस्थता में, वायु बनना चाहता हूँ।

आग थोड़ी शांत करके, जल जलाना चाहता हूँ।

ये नाम बहुत तकलीफ़ देता, अब गुमनाम होना चाहता हूँ।

कोई ढूंढे और पूछे , अब सब बताना चाहता हूँ।



Rate this content
Log in