बगावत की बयार
बगावत की बयार


शांति के लिए शांति पाठ तो ,
युद्ध के लिए भी शंखनाद होना चाहिए |
राष्ट्र के लिए भी एक प्राण और ,
प्राण में भी राष्ट्रप्रेम होना चाहिए |
जन्म के लिए पालना तो ,
मृत्यु के लिए भी एक शैया चाहिए |
अमरत्व लिए अमृत इठलाता तो ,
विष को भी स्वयं पर नाज होना चाहिए |
रात के लिए एक चाँद तो ,
दिन में भी एक रात होनी चाहिए |
अगर सूर्य भी तपन न रोके तो ,
अवरोध बन ग्रहण लगना चाहिए |
राह में अवरोध बने शूल तो ,
शूल को भी फूल बनना चाहिए |
अगर शूल फिर भी न समझे तो ,
अब शूल भी विदीर्ण होना चाहिए |
काल में काल से भयभीत तो ,
काल का भी एक काल होना चाहिए |
लाँघ अगर दे मर्यादा काल तो ,
अब महाकाल बनना चाहिए |
सागर को भी गर्त का संज्ञान लेना चाहिए,
कष्ट को भी कष्ट का एहसास होना चाहिए |
ढाल ही क्यों बार बार वार सहे ,
अब ढाल में भी प्रहार को धार देनी चाहिए |
शून्य ही क्यों सदा जुड़कर अस्तित्व मिटाये ,
अब उसे भी टकराकर अस्तित्व मिटाना चाहिए |
सब अच्छा है तो इतनी बेचैनी क्यों,
अब सियासत में भी खुद्दारी पनपनी चाहिए |
कब तक यूँ ही कठपुतली बन नाचोगे ,
नाचना है तो रूद्र का तांडव होना चाहिए |
तुम कब तक यूँ ही प्रेम गीत गुनगुनाओगे ,
अब मुख से नाद भी ब्रह्मनाद निकलना चाहिए |
बोलो! कब तक आहिस्ता से बहकर आत्ममुग्ध रहोगे ,
अब तो तुम्हे आंधी और तूफानों से बात करनी चाहिए |
यूँ कब तक सहोगे अन्याय तुम,
अब संसार में बगावत की बयार बहनी चाहिए |