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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Fantasy Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Fantasy Inspirational

रिश्तों में मिठास

रिश्तों में मिठास

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रिश्तों में मिठास कम होने लगी है 

जिंदगी अब गमों में डुबोने लगी है 


सच का सिक्का कहीं चलता नहीं 

झूठ की दुकान फलने फूलने लगी है 


फरेब के मॉल सज रहे हैं चारों तरफ

सच्चाई की नींव अब दरकने लगी है 


प्यार बिक रहा है कागज के फूलों सा 

वफाओं की कलियां मुरझाने लगी है 


जवानी की आग में जल रहा है बुढापा 

अपमान की शीत लहर चलने लगी है 


मनोरंजन के नाम पर बिक रहा है कचरा

फूहड़ता कॉमेडी की शक्ल में आने लगी है 


पैसों की चकाचौंध में डोल रहा है ईमान

इंसानियत चौराहे पर नीलम होने लगी है 


रावणों के सम्मुख बेबस लग रहा है न्याय

कानून के हाथों की पकड़ ढ़ीली होने लगी है।


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