आओ छूकर हाल पूछें
आओ छूकर हाल पूछें
प्रस्तरों के नर्म दिल का, आओ छूकर हाल पूछें।
नश्तरों की चोट खाते, उन पत्थरों का हाल पूछें।
मौसमों की अरुचि निशि में, करवटों का हाल पूछें।
हर तरह की वेदना में, अब भीग कर ही हाल पूछें।
प्रस्तरों के नर्म दिल का, आओ छूकर हाल पूछें।।
राहों में पथिकों को देते, फल, छांव का कुछ मोल देखें।
क्यों कटे सब कुछ भी देकर, बेहाल तरु का हाल पूछें।
जिसने किया जीवन समर्पित, क्या दोष उसका आओ पूछें।
छरहरी काया में लिपटे,सर्प का कोई तोड़ सोचें ।
प्रस्तरों के नर्म दिल का, आओ छूकर हाल पूछें।।
बेवजह पनपे रिपु में, मीत का एक बिम्ब देखें।
शत्रुता में खो दिया जो, उस मित्र में प्रतिबिंब देखें।
जो खो गई सागर की सुध में, उस नदी का कुछ हाल पूछें।
कितने उतारे पार जिसने, उन कश्तियों का हाल पूछें।
प्रस्तरों के नर्म दिल का, आओ छूकर हाल पूछें।।
