शूल,दर्द सहनशीलता
शूल,दर्द सहनशीलता
शूल ही देते है,अक्सर हमको यहां पर सहारा
फूलों का क्या थोड़े से मुस्कुराये, मुरझा लिये
दर्द ही बढाते है,हमारी सहनशीलता का पारा
खुशियों का क्या,चंद आंसू आये ओर डूब लिये
अजीब सी कशमकश है,इस जीवन की यारा
अंगारों पर जले,कुंदन बनकर के चमक लिये
जिसे माना अपना,वो निकला दोपहर सपना
धोखे खाये जीभर,तब अपनों के सबक लिये
छोड़ दे,साखी रुपये-पैसे का करना अहंकारा
एकपल किस्मत रूठी,जमीं पे सितारे आ गए
जो करते थे,अपनी ताकत पे गुमां बहुत सारा
वो बुढापे आने पर,चुपचाप लाठी पकड़ लिये
दुनिया के दलदल ने उसको तो दिया है,सहारा
सँघर्ष की रेत पर जो पांव,मजबूती से रह गये
शूल,कांटों ने तो उस राही के पथ को है,संवारा
जिसके पांव,हर शूलों की मार,दर्द को सह गये।