निर्झर जैसी अपनी धुन है
निर्झर जैसी अपनी धुन है
निर्झर जैसी अपनी धुन है।
बहते यूं ही जाना है।
बेशक दूर है मंजिल मेरी
लेकिन उस को पाना है।
आते हैं अवरोध बहुत,
पर उस से क्या घबराना है।
अपने मन के इस मीठे ठंडे जल को।
प्यासी धरती तक पहुंचाना है।
कितने वृक्ष मेरी राह हैं तकते।
कवि हृदय मुझे यूं ही तकते।
उनके सुने मन आंगन में
फिर से विश्वास जमाना है।
मेरी बहती धारा के साथ
नाचते हुए बच्चों की खिलखिलाहट के साथ
मुझको भी धमाल मचाना है।
निर्झर जैसी मेरी धुन है
यह दुनिया को दिखा्लाना है।
अपनी लेखनी के माध्यम से ही
सकारात्मकता मुझे लाना है।
लोगों के प्यासे अंतर्मन में
एक नया प्यार बनके बस जाना है।