नही चाहती तुम सा बनना
नही चाहती तुम सा बनना
तुम्हारे जैसा बनना जो चाह कर भी रो नहीं सकता
टूट सकता है पर झुक नहीं सकता
रहता है हमेशा तुझ में पुरुष होने का दंभ
मैं औरत हूं और हर जन्म औरत ही होना चाहती हूं
हंस लेती हूं खुले आसमान की तरह बूंदे बन कभी बरस जाती हूं
कभी ठंड की तरह थरथराती हूं तो कभी जाड़े की धूप सी गर्माहट दे जाती हूं
सात रंगों का इंद्रधनुष समाया है मुझ में सात सुरों का वास है
स्नेह की बारिश करतीइसी स्नेह की धारा में बह जाती हूं
तू इतना दंभ रखता है तुझे भी तो मेरी कोख ने हीं इस दुनिया में लाया है
नहीं चाहती मैं तुम्हारे जैसा बनना औरत हूं हर जन्म औरत बनना चाहती हूं।