राम
राम
युग का जब -जब भी आविरभाव होगा।
राम तुम्हे तब-तब ही वनवास होगा।
झूठ फरेब की राजनीति का रावण,
जब दस शीश में आयेगा।
राम के सच का राज तिलक ,
फिर कहां हो पायेगा।
घर -घर में जब रिश्ते दोगले हो जायेंगें।
कैकयी-मंथरा की सोच से प्रेम बंट जायेंगें।
तुम मातृ-पितृ ऋण को कितना भी चुकाना,
धन के आगे सेवा का कोई मूल्य न आंका जायेंगा।
मोह-माया के चककर में,मानव
माया को ही जब-जब गले लगायेगा।
राम घर छोड,तब -तब वन को जायेगा।