अफ़सोस नहीं करते
अफ़सोस नहीं करते


अफ़सोस नहीं करते ऐसी बातों का,
जिसने तुम पर हृद घात किया हो।
क्यों डरते हो ऐसे जग से,
जिसने सबकुछ मोल लिया हो।
वैसे तुम उनकी बातों पर,
इतना क्यों ध्यान लगाते हो,
वो शायद दर्पण हैं जग के ,
प्रतिबिम्ब से क्यों डरते हो।
दूर क्षितिज में सूरज भी,
लाल दिखाई देता है,
आसमान में चढ़कर ही,
धवल दिखाई देता है।
शशी को देखो घोर तिमिर से,
पूनम तक जाना पड़ता है।
इसीलिए वो जग में सबसे,
ऊपर दिखलाई पड़ता है।
नदियां भी तो सागर से,
न ही निकला करती हैं।
दूर हिमालय से चलकर
,
पावन बन पूजी जाती हैं।
बाहें फैलाकर सागर भी,
आलिंगन कर अश्रु बहाता है |
कोटि जीव की प्रेरणा बन,
जीवन के प्राण बचता है।
काले मेघों और तूफानों में,
पर्वत अडिग न होते हैँ।
सब झंझाबातों में जो शांत रहे,
विराट हिमालय बनते हैं।
आच्छादित हिमखण्डों में भी,
सहज न पल भर होता है
काल क्रम में वही हिमालय,
गंगा को जन्माता है।
उठो चलो अब अपने पथ पर,
जो भी तुम संकल्प लिए हो।
निष्काम करो तुम निज कर्म,
मन में धारण कर जो आये हो।