गीतोत्सव
गीतोत्सव
मीरा जैसी भक्ति नहीं
राधा जैसा प्रेम नहीं
श्रीराम के आदर्श की बात करूं मैं क्या,
'सीता' सी पतिव्रता कोई नहीं,
गीता जैसा ज्ञान नहीं
वेदों की कोई बात नहीं,
चीर हरण की बात करूं मैं क्या,
'द्रौपदी' सा अपमान नहीं।।
पंक से शुभ कुछ और नहीं
खिलता पंकज कहीं और नहीं,
पृथ्वी का पयाम कोई सुना नहीं,
'प्रकृति' सा फिर, कोहराम नहीं।।
हिमालय सम पर्वत नहीं,
गोमुख गंगा का कहीं और नहीं,
पुराणों में वर्णित, नदियों की बात करूं मैं क्या,
'गंगा' सी निर्झरणी कोई नहीं।।
भिक्षा सम कोई दान नहीं
दानी, कर्ण समान नहीं,
अहिंसा से बड़ा कोई धर्म नहीं,
युधिष्ठिर की बात करूं मैं क्या,
'सत्यवादी' हरिश्चंद्र सा कोई नहीं।।
मां से ज्यादा कहीं सुख नहीं,
पिता अम्बर से कम नहीं,
वसुधा की बात करूं मैं क्या,
'अंक' प्रकृति सा कहीं और नहीं।।
समय सी किसी में गति नहीं
सूरज सा कहीं तेज नहीं
अग्नि की बात करूं मैं क्या,
'चांदनी' सी शीतल कोई निशा नहीं।।
पायल सी झनकार नहीं,
वीणा सी कोई तान नहीं,
सात-सुरों की बात करूं मैं क्या,
मुरली सा मनोहर संगीत नहीं।।
