प्रेम
प्रेम
प्रेम
एहसास है
कुछ पलों का
किताब में गिरी
वो बूंद है मोतियों सी
स्याही की
जो फैलकर कभी
मिटती नहीं।
प्रणय
अन्तर्मन से निकला
वो सुहाना,
फूलों सा महकता
गीत है।
जो प्रेयसी की
वेदनाओं का
स्याह सी रात का
अधूरा मिलन
है।।
प्रेम
प्रेरणा है
गर्त से निकलने का,
मिलन है
मन से मन
का
दिल से रूह
का।।
प्रेम
आगाज है
अतीत का, वर्त और
भविष्य का।
प्रमाण भी।।
सुघर, सुन्दर, सुमंगल
आज का।।