ग़ज़ल
ग़ज़ल
सनम मेरे हमराही तू मेरा चांद तारा हैl
खुदा ने कुछ सोचकर तुझे जमीं पर उतारा हैll
तुम्हारी आंखें चमकती जुगनूं सी अदाकारा हैंl
तेरी नज़रों का मारा दिल मेरा घायल बेचारा हैll
जाना मेरे वीरान से दिल में, तू समन्दर सा बहता है।
करें क्या रूठकर तुमसे, दिल गोते यही लगाता है।।
महफ़िल सजी नग्में सुने, यहां अंदाज-ए-शायराना है।
बिना तेरे महफ़िल कहां, लुटा दिल का खज़ाना है।।
रोशनी का खज़ाना तू, पीछे सारा जमाना है।
धड़कत
ी धड़कनों में तेरी, सनम मेरा आशियाना है।।
नाराज़गी भी तुम्हीं से, संग दिल प्यार का घराना है।
लुटे जब भी दिल का घरौंदा मेरा, तुझे ही सजाना है।।
जाना कब तक करोगे यूं,सनम गुस्ताखियां हमसे।
बे-लौस इख़्तिलात यूं ही रहे, न खफा हो जहां तुमसे।।
ले डूबती है अक्सर, हमनवा तुझे नादानियां तेरी
चुराकर दिल मेरा, समझ रहा खुद को सियाना है।।
जाए जहां भी तू, है सनम तुझ पर नज़र मेरी।
हंसकर कहो'अवनि', मरीज़-ए-इश्क़ इसे ही बनाना है।