वीर सिपाही
वीर सिपाही
हे ! सरहद पर मिटने वाले
खुशियां अपनी तजने वाले।
है ! शत्- शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
मिट्टी के तुम साधु-सन्त
तुम ही वीर निपुण, प्रवीण, कौशल, सुजान
हृदय प्रकाशित तेज़ प्रकाश,
गोधूलि का तम हरने वाले।
है! शत्- शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
साहस, शौर्य, पुण्य, प्रताप तुम्हीं से,
प्रज्वलित अग्नि सा तेज़ अनंत,
न जाति- धर्म में बंधने वाले।
दुश्मन का सर हरने वाले।
है !शत्- शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
सोने-चांदी सा प्रेम करें,
मिट्टी से ही श्रृंगार करें,
ऋणी तुम्हारा जन- जन है,
गुणगान वतन का करने वाले।
है! शत्- शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
जज्बा अप्रतिम प्रस्तर सा हौसला,
स्वर्ण से भी हो नाजुक तुम,
सूर्य-शशि में वो तेज़ कहां,
जितना परिदृश्य तुममें प्रकाश,
राष
्ट्र तुम्हारे रग-रग में,
प्राणों की आहुति देने वाले।
है! शत् शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
है जना तुम्हें जिस जननी ने,
गौरवान्वित है भारत माता,
ग्रास है देश-प्रेम जिनका,
मुल्क गर्द में चलने वाले।
है! शत्-शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
राष्ट्र जिन्हें प्राणों से प्यारा,
है त्याग, तपस्या, पूजा, अर्चना
मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा भी
गौरव से जीवन जीने वाले।
है! शत्- शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
धरणी के कृष्ण-राम सम,
अर्जुन और द्रोण तुम्हीं,
तुम ही जीवनदाता हो,
कर्ण सा दानी बनने वाले।
है! शत्- शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
हे! सरहद पर मिटने वाले,
खुशियां अपनी तजने वाले।
है! शत्- शत् बारम्बार प्रणाम तुम्हें।।
जना :-- पैदा करना
धरणी :- पृथ्वी ,धरा