सुनहरा कल
सुनहरा कल
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फिर उगेगा नवल सूरज
और खिल उठेगा आसमां।
कदम-कदम है नयी कहानी
कह रही है ये ज़मीं,
साहस हो दिल में पर्वतों सा
भर चले दामन में तू,
डटकर लड़ा जो बार-बार
जीतेगा फिर से हौसला,
और खिल उठेगा ये जहां,
धारा न टूटे धैर्य की
कह रही बहती नदी,
फिर खिलेंगी फूल - कलियां
गायेंगी नग्में तितलियां,
धरती लिखेगी नयी दास्तां
और खिल उठेगा ये समां।।