शब्द से पंक्ति
शब्द से पंक्ति
शब्द शब में ही शब्द कुरेदते हैं।
दर्द कम ज़ालिम ज़ख़्म गहरे हैं।।
'जख़्म' हरे होने पर ही गहरे होते हैं।
अपशब्द जीवन भर हिय कुरेदते हैं।।
'गहरे' प्रेम में शक की गुंजाइश होती है
शक में हुआ प्रेम घर उजाड़ देते हैं।।
'उजड़े' चमन में बहार कहां होती है।
सूखी वल्लारियों में फूल नहीं खिलते हैं।।
'बहारों' में प्रेम अथाह होता है।
प्रेम भटके मुश़ाफिर को भी राह देते हैं।।
मुनासिब है भटके को, मंजिल मिल ही जाती है।
गर 'मुश़ाफिर' ही मुश़ाफिर के काम आते हैं।