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AMAN SINHA

Drama Tragedy

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AMAN SINHA

Drama Tragedy

मैं अकेला बाज़ार में

मैं अकेला बाज़ार में

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मैं अकेला बाज़ार में, ग्राहक के इंतजार में 

बाट उनकी जोह रहा, मक्खियाँ उड़ा रहा 

दो प्रहर बीता अब तक, बोहनी भी हुई नहीं 

चौखट अब तक बेचैन रही, ग्राहक के पग को छुई नहीं 

   

बेचने को पास मेरे समान ढेर सारे है 

एक खरीददार के लिये हम नैन यूं पसारे है 

क्या ना जाने हो गया बाजार जैसे सो गया 

रौनकें चहल-पहल, जमावड़ा भी खो गया 

      

सड़क सुनसान है श्मशान के समान है 

बाज़ार के उदासी का कर रहा बखान है 

दो दुकानदार यूं ही खुद में उलझ पड़े 

बे मतलब की बात पर आपस में लड़ पड़े          


गल्ले पर बैठा मुनीम ऊँघता ही जा रहा 

पास बैठा मजदूर भी कुछ अजीब है गा रहा 

तीसरे प्रहर में ही दुकानें बंद हो गयी 

जान जो बची हुई थी एक पल में ही खो गयी 


मंदी का पेट पर कैसा हो रहा प्रहार है 

इसके आग में जल रहा हर एक दुकानदार है

मैं अकेला बाज़ार में, ग्राहक के इंतज़ार में 

बांट उनके जोह रहा, मक्खियां उड़ा रहा


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