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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

जीवन फंसा बीच मंझधार

जीवन फंसा बीच मंझधार

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जीवन फंसा हुआ है, बीच मंझधार

सब ओर से दिख रहा है, हाहाकार

समझ न आ रहा, क्या करूँ व्यवहार

जिससे मिट जाए, दुविधा का संसार


जब वक्त बुरा हो, तन वस्त्र करें, रार

वक्त बुरा हो, तिनके भी लगें, तलवार

प54इस उम्मीद मे नही रहे, कोई नर-नार

कोई आकर करेगा, जीवन में चमत्कार


जो कुछ करना हमें ही करना है, यार

तूफानों बीच उसका निखरे, किरदार

जो फूलों से ज्यादा शूलों से करें, प्यार

उठ खड़ा हो, सँघर्ष करने की भर, हुंकार


फिर देख विजय में बदलेगी, तेरी हार

अग्नि में तपकर जैसे स्वर्ण होता, तैयार

वैसे तू कठिनाइयों से लड़ने को हो तैयार

लहरों की दिशा में चलने को सब तैयार


पर जो लहरों के विपरीत करता, व्यवहार

वो इस जीवन मे पाता, सफलता, यादगार

कठिनाईयों से डरो नही, लड़कर पाओ, पार

जो लड़ा उसने ही जीता है, सकल संसार


जो देखता रहा, वो फंसा रहा बीच, मंझधार।


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