वो दर्द बेचने निकले भरे बाज़ार में, कोई ग्राहक ना मिला भरे बाज़ार में, वो दर्द बेचने निकले भरे बाज़ार में, कोई ग्राहक ना मिला भरे बाज़ार में,
ग्राहक तो बहुत पर इन्सान कभी-कभी आते हैं। ग्राहक तो बहुत पर इन्सान कभी-कभी आते हैं।
हट जाए मगर यह जातिवाद जा ही नहीं रहा है। हट जाए मगर यह जातिवाद जा ही नहीं रहा है।
'उपभोक्तावादी कुसंस्कृति ने हसरतों का नया तूफ़ान लाया है, सुंदरियों के बदन से साबुन के झाग ने मन को... 'उपभोक्तावादी कुसंस्कृति ने हसरतों का नया तूफ़ान लाया है, सुंदरियों के बदन से स...
सारे दिन घर में पड़ी पड़ी क्या करती है एक टाँका लगाने में क्या तेरी माँ मरती है तेरे आलस ने भरे ब... सारे दिन घर में पड़ी पड़ी क्या करती है एक टाँका लगाने में क्या तेरी माँ मरती है...
समझकर यही कब भगवान आ जायें ग्राहक देवता है होता, सन्तोष उनका महाप्रसाद समझकर दुकान पर मैं चढ़ता ह... समझकर यही कब भगवान आ जायें ग्राहक देवता है होता, सन्तोष उनका महाप्रसाद समझकर ...