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Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

तृप्ति के आँसू

तृप्ति के आँसू

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कलयुग के वक़्त में सतयुग की झलक नज़र आई

अजनबियों की भीड़ में किसी ने इंसानियत दिखाई।


लस्सी वाले की दुकान पे एक बुजुर्ग महिला आई

कुछ पैसों की आस में उसने अपनी झोली फैलाई।

झुकी कमर, सजल नयन, चेहरे पर भूख की पीड़ा

महिला की दुर्दशा पे एक युवक को बड़ी दया आई।


कुछ पैसे देने के बजाय उसने दादी से पूछ लिया

लगता है आप भूखी हैं हमारे साथ लस्सी पियोगी।

दादी पहले थोड़ा सकुचाई लेकिन फिर हाँ कर दी

और दिन की माँगी पूंजी ६-७ रुपए आगे कर दी।


महिला का भाव देख, युवक की आँखें भीग गयी

दुकानदार से एक लस्सी का कुल्लड़ देने को कही।

दादी ने अपने पैसे वापस मुठठी में बंद कर लिये

और वहीं युवक के पास ही जमीन पर बैठ गयी।


दुकान वाला और अन्य ग्राहकों की मौजूदगी में

दादी को नीचे देख उसे लाचारी का अनुभव हुआ।

और जैसे ही लस्सी मित्रों और दादी के हाथ आई

युवक भी दादी के साथ ही जमीन पर बैठ गया।


इससे पहले वहाँ बैठे लोगों में कोई कुछ कहता

दुकानदार ने पहले दादी को कुर्सी पर बैठा दिया।

ग्राहक तो बहुत पर इन्सान कभी-कभी आते हैं

कहके युवक को कुर्सी पे बैठने का इशारा किया।


दादी की आँखों में दुआएं और तृप्ति के आँसू थे

“योगी” और बाकी सभी इस नज़ारे से गदगद थे।।


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