कुछ-कुछ
कुछ-कुछ
अगर तुम सोचती हो कि
मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है
तो शायद तुम ग़लत हो
तुमने ही तो कहा था कल
मुझे देखकर कुछ-कुछ होता है
अक्सर तुम्हारे दिल में
कुछ कुछ होता तो इधर भी है दिल में
मगर ये कुछ-कुछ इश्क की हवा नहीं है
जज़्बातों का बेकाबू समंदर नहीं है
दिल्लगी का मासूम खिलौना नहीं है
ये कुछ-कुछ तो बस मत पूछो
मेरे अंदर उफनता इक जुनून है, पागलपन है
जो उड़ा कर ले जाते है मुझे हर पल
नीले आसमान की ऊंचाइयों के उस पार
तुम समझती हो तुम ही मेरी मंज़िल हो
मगर ये ख़्याल कभी दिल में मत लाना
मेरी मंज़िल तो वह है
इन आंखों को है जिसकी तलाश आज भी
नाराज़ न होना कुछ कहना है मुझे
पगली गलती तुम्हारी नहीं
ये कमबख्त उम्र ही ऐसी होती है
नजरें मिली नहीं कि इश्क हो गया।