नज़र आती है
नज़र आती है
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छोटी छोटी बातों पर सियासत नज़र आती है,
लोगों की बदली हुई आदत नज़र आती है।
धर्म का नाम है और कर्म का ताना बाना नहीं,
ज़िम्मेदारी जो मिले तो आफ़त नज़र आती है।
स्वदेश में रहकर भी स्वदेशी नहीं मिलते,
जहां कहीं भी देखो बगावत नज़र आती है।
मतभेदों से आगे निकल कर मनभेदों की,
खुले आम रिश्तों में अदावत नज़र आती है।
जिसे देखो सम्बन्ध भुनाने की कोशिश है,
अब चेहरे पर कहाँ शराफ़त नज़र आती है।