STORYMIRROR

राही अंजाना

Abstract

4  

राही अंजाना

Abstract

नज़र आती है

नज़र आती है

1 min
370

छोटी छोटी बातों पर सियासत नज़र आती है,

लोगों की बदली हुई आदत नज़र आती है।

धर्म का नाम है और कर्म का ताना बाना नहीं,

ज़िम्मेदारी जो मिले तो आफ़त नज़र आती है।

स्वदेश में रहकर भी स्वदेशी नहीं मिलते,

जहां कहीं भी देखो बगावत नज़र आती है।

मतभेदों से आगे निकल कर मनभेदों की,

खुले आम रिश्तों में अदावत नज़र आती है।

जिसे देखो सम्बन्ध भुनाने की कोशिश है,

अब चेहरे पर कहाँ शराफ़त नज़र आती है।



विषय का मूल्यांकन करें
लॉग इन

Similar hindi poem from Abstract