राज़
राज़
राज़ कितने ही दिल में दबाने लगे,,
जख्म भी तुमसे कितने छिपाने लगे,
ज़िन्दगी साथ तेरे बिताने को क्यों,
अश्रु आँखों से हम थे बहाने लगे।
ये सरल तो नहीं था हमारे लिए,
गीत गजलें भी हम थे बनाने लगे,
हो गए थे मोहब्बत में दीवाने हम,
बात अपनी सभी को सुनाने लगे।
प्रश्न उलझे थे हमसे जो सुलझे नहीं,
आगे आकर हमें हल बताने लगे।
रूठ कर जो गए थे किसी मोड़ पर,
आज हमको वही फिर मनाने लगे।
दो कदम भी बढ़ाये से बढ़ न सके,
प्यार में पार नदिया के जाने लगे।
जिस कहानी के किरदार थे हम नहीं,
राही कह के वो परिचय कराने लगे।