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Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

4  

Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

अभिलाषा

अभिलाषा

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पंछी बन उड़ जाऊँ उन्मुक्त नील गगन में,

खोल कर बंधे परों को गहरी साँस भरु मैं l

अपने हिस्से की खुशियाँ जी भर कर जी लूँ,

मन के किसी कोने में दबी ये अभिलाषा है l


बेझिझक जी भर खिलखिला कर हस पाऊ,

हो कोई ऐसा कोना जहाँ दर्द अपना बहा आऊl

बारिश की रिमझिम बरसती बूंदो में मैं नहाऊं,

मन के किसी कोने में दबी ये अभिलाषा है l


तितली बन बागों में घूमू परों पर इतराऊ,

भौंरा बन गुंजार करुं कमलों में छिप जाऊँ l

मोहन की मुरली की धुन बन सबको रिझाऊ,

मन के किसी कोने में दबी ये अभिलाषा है l


सागर की गहराई में गहरा गोता लगा आऊ,

सूरज की किरणों संग खेलु इंद्रधनुष बन जाऊँ l

फूलों की खुशबु बनकर चहुँ ओर बिखर जाऊँ l

मन के किसी कोने में दबी ये अभिलाषा है l


बचपन में जाकर मैं सखियों संग मिल आऊ l

स्नेहिजनों का साथ न छूटे ऐसा क्या कर जाऊँ l

भोली सी मुस्कान बन सबके अधरों पर छा जाऊँ l

मन के किसी कोने में दबी ये अभिलाषा है l


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