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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

बेटी

बेटी

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बेटी से परिवार मे आती खुशहाली है

समझ मत तू इसको एक गाली है।

नव पल्लव,नव तरु जैसे खिलता है,

वैसी ही शिशु की करती ये रखवाली है।


बेटी तो प्रभु का दिया एक वरदान है ,

यह भी तो मां बनकर,

सृष्टि का निर्माण करनेवाली है।

फूलों से ज़्यादा नाज़ुक है,

पर्वतों से ज़्यादा हिम्मतवाली है।


दुनिया मे नफरतें फैली हुई बहुत है,

यह तो प्यार फैलाने वाली एक बाली है।

हे मनु मत मार इसको तू कोख में,

यह तुझे ही कोख़ से जन्मदेने वाली है।


प्रकृति के सब गुण इसमे समाये हुए है,

फ़िर भी कोमलता ही इसने तो पाली है।

ख़ुदा की जीवंत प्रतिमा है बेटी,

उनके ही जैसे पूरे जहां की एक छोटी सी माली है। 


गर बेटी हैं तो ही पत्नि ,बहिन और माँ जिंदा होगी,

समझ जा मनु,नहीं तो जल्दी ही दुनिया होगी खाली है।

तेरे बारे में हे मातृशक्ति, जितना लिखूं वो कम होगा,

तेरे ही दूध से बने मेरे तन की एक एक डाली है


बेटा होता है वो घर भाग्यशाली होता है,

बेटी के होने से घर हो जाता सौभाग्यशाली है।

बेटी तो होती ही वँहा,जंहा खुदा की रहमत ज़्यादा होती है।

बेटी तो ख़ुदा के दिल से निकली प्याली है।


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