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कुमार संदीप

Drama

5.0  

कुमार संदीप

Drama

माँ

माँ

1 min
376


झुर्रियों में सदियों को समेटे रहती है

ख्वाहिशों की आहूति देकर भी खुश रहती है।


लाल पर वार देती है खुशियां सूर्य समान परोपकारी होती है

हाँ वो खूबसूरत सूरत कोई और नहीं वो माँ होती है।


बेटों से जब होती है दूर तन स्थिर मन अस्थिर रखती है

रातों में खूब रोती है मन ही मन मर जीती है।


अपने जिगर के टुकड़े से भला कैसे दूर रह पाती है

हाँ वो प्रेम की मूरत कोई और नहीं वो माँ होती है।


चाहतों का कर के बलिदान लाल पर वार देती है

न रखती है चाह भौतिक संसाधनों की।


ममता की इस मूरत के लिए सुख साधन उसका लाल है

हाँ वो त्याग की मूरत कोई और नहीं वो माँ होती है।


जब तक घर न लौटते हैं बच्चे टकटकी लगाए रहती है

बेचैन झांकती रहती है घर की दरवाजे की ओर,


न जाने कब लाल घर वापस आएगा सब ठीक तो है

हाँ वो प्रश्न करने वाली कोई और नहीं माँ होती है।


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