STORYMIRROR

Kunti Naval

Drama

4  

Kunti Naval

Drama

दर्द

दर्द

1 min
347

आंसुओं ने कैसी ज़िद कर रखी है

दर्द को मात देने बैठ गया

तू सीने में छिप कर बैठा है

मैं पलकों में छिप कर बैठ गया।


ए दर्द अपनी दास्तां सुना दे तू

पलकों की कोरों से बह जाऊंगा

चुपके-चुपके अपने आप को

सीने से निकाल ले जो तू।


दर्द को बना कर दवा तू

रहमतें अख्तियार कर

सबब प्यार का मिलेगा तूझे

खुदा के बन्दों से तू प्यार तो कर।


खुदगर्जी से निकाल खुद को

मिलेगा ख़ुदा तुझ को

कोशिश तो कर के देख ज़रा

सुकून कितना तेरे मन में है भरा।


चाहत तेरी तूझे मिला देगी तुझसे

रहेगा बस तू देखता खड़ा ही खड़ा

दर्द को सीने से निकल जाने दे

आंसुओं को बर्फ़ सा पिघल जाने दे।


न कैद में रख इनको 

ज़ालिम बन के जला डालेंगे

दर्द को न कर सीने में दफन

ओढ़ा के खामोशियों का कफ़न।


बांट लें बना कर खुशियां

जिसमें मिल जाए बेनूर

 बेघर जिंदगियों को सहन

आंखें भी मूंद कर बोले 

आंसू नहीं है ये

यही तो है सच्ची सहर।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Kunti Naval

Similar hindi poem from Drama