दर्द
दर्द
आंसुओं ने कैसी ज़िद कर रखी है
दर्द को मात देने बैठ गया
तू सीने में छिप कर बैठा है
मैं पलकों में छिप कर बैठ गया।
ए दर्द अपनी दास्तां सुना दे तू
पलकों की कोरों से बह जाऊंगा
चुपके-चुपके अपने आप को
सीने से निकाल ले जो तू।
दर्द को बना कर दवा तू
रहमतें अख्तियार कर
सबब प्यार का मिलेगा तूझे
खुदा के बन्दों से तू प्यार तो कर।
खुदगर्जी से निकाल खुद को
मिलेगा ख़ुदा तुझ को
कोशिश तो कर के देख ज़रा
सुकून कितना तेरे मन में है भरा।
चाहत तेरी तूझे मिला देगी तुझसे
रहेगा बस तू देखता खड़ा ही खड़ा
दर्द को सीने से निकल जाने दे
आंसुओं को बर्फ़ सा पिघल जाने दे।
न कैद में रख इनको
ज़ालिम बन के जला डालेंगे
दर्द को न कर सीने में दफन
ओढ़ा के खामोशियों का कफ़न।
बांट लें बना कर खुशियां
जिसमें मिल जाए बेनूर
बेघर जिंदगियों को सहन
आंखें भी मूंद कर बोले
आंसू नहीं है ये
यही तो है सच्ची सहर।
