दिन भर की भागदौड़ से
दिन भर की भागदौड़ से
दिन भर की भागदौड़ से
जब घर को मैं आता हूं
खाट लगे बिस्तर पर
गहरी नींद में सो जाता हूं।
तब जाकर मम्मी आती
धीरे-धीरे सर को सहलाती
चाय नाश्ता साथ ले आती
खाने को रटन लगाती।
इसको कहती उसको कहती
सर पर भिक्श मल वह जाती
तब जाकर गुस्से में आ जाती
सबको डांट फटकार लगाती।
कहती इनके मेहनत को देखो
किस प्रकार सब उड़ा देते हैं
तनिक भी चिंता नहीं कोई
इस भागदौड़ का कर पाते हैं।
अपने-अपने अच्छा पूर्ति को
सब नोच नोच इसे जाते हैं
कोई नहीं तनिक भी इसका
बात कष्ट का करपाते हैं।
दिन भर के भागदौड़ से
जब बेटे शाम में धर आते हैं
खाट लगे बिस्तर पर
गहरी नींद में सो जाता हूं।