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Akhtar Ali Shah

Drama

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Akhtar Ali Shah

Drama

आकर चली गई

आकर चली गई

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गीत

आकर चली गई

*

परदेशिया पे करके भरोसा छली गई

ऋतू आई थी वसंत की आकर चली गई।

*

वादा था ये बसंत में वो आएगा जरूर,

अपना बनाके घर मुझे ले जाएगा जरूर।

गर आ नहीं सकेगा तो पहुंचाएगा खबर,

पर साथ नही छोडेगा अपनाएगा जरूर।।

 आँखें मेरी पथरा गई पथ देख देखकर ,

बनना था जिसे फूल वो मुरझा कली गई।

ऋतू आई थी वसंत की आकर चली गई।।

*

उसने कहा था चांद उतारेगा गगन से,

ख्वाहिश करेगा पूरी वो हरएक लगन से ।

रक्खेगा मुझे हाथ के छालों की तरह वो,

जब तक न होगी जान जुदा मेरे बदन से।।

कर याद सितमगर की वो बातें उदास हूँ,

किससे ये शिकायत मैं करूँ के छली गई।

ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई।।

*

माँ बाप जिसके साथ हो किस्मत धनी रहे,

हर बिगडी हुई बात भी उसकी बनी रहे।

रब उसको भीगने नहीं देता है कभी भी,

बरसात जिसपे होती गमों की धनी रहे।।

किस्मत धनी है मेरी मगर क्यों दुखी हूँ मैं,

तू छोड़ कैसे मुझको करम की जली गई।

ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई।।

*

साकार मेरा ख्वाब हंसी हो नहीं सका,

मझधार में यूं आके सफीना मेरा रुका।

होकर के दिशाहीन कोई क्या करेगा अब,

बौराया पथिक दिख रहा है ये थका थका।।

 क्या उसका दंड होगा ये "अनंत" बताओ,

विश्वास के चेहरे पे जो कालिख मली गई।

ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई।।

*

अख्तर अली शाह "अनंत"नीमच

9893788338


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