प्रगति की अंधी दौड़ प्रगति की अंधी दौड़
विश्वास के चेहरे पे जो कालिख मली गई ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई। विश्वास के चेहरे पे जो कालिख मली गई ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई।
धन, स्त्री, प्राप्त करने की मानवीय इच्छा ने उसे बंदी बना लिया, धन, स्त्री, प्राप्त करने की मानवीय इच्छा ने उसे बंदी बना लिया,
संशय है जहरीला धोखा, इसे कभी मत खाना अपने मन को उहापोह की, स्थिति में ना लाना! संशय है जहरीला धोखा, इसे कभी मत खाना अपने मन को उहापोह की, स्थिति में ना लाना...
एक तरफ है स्वाभिमान है दूसरी तरफ मजबूरी एक तरफ है स्वाभिमान है दूसरी तरफ मजबूरी
कितनी बार नियंत्रण अपना साँसो तक से उठ जाता था कितनी बार नियंत्रण अपना साँसो तक से उठ जाता था