STORYMIRROR

Kishan Negi

Abstract Drama Inspirational

4  

Kishan Negi

Abstract Drama Inspirational

कमबख्त यार मेरा

कमबख्त यार मेरा

1 min
286

अंधेरी गलियों में भटक रहा था यार मेरा

हाथ पकड़कर उजाला मैंने ही दिखाया था

उसकी हर उड़ान को मैंने ही पंख लगाए थे

गगन के माथे पर नाम उसका लिखाया था


अपने आंसू छिपाकर उसके आंसू पोंछे थे

अपना हक़ भूलकर हक़ उसका दिलाया था

यही सोचकर कि हम तो फ़र्ज़ निभा रहे हैं

उसकी ख्वाहिशों को मंज़िल से मिलाया था


नादानी में हम अपना ही शिकार कर बैठे

सत्ता के नशे में गिरगिट रंग बदलने लगा

कतार में हम अब सबसे पीछे खड़े रहते हैं

चुराके नजरें हमसे बेशर्म निकलने लगा है


गलती हमारी थी इक गैर को यार समझ बैठे

भरोसा कैसे टूटे ज़ालिम हमको सीखा गया

अपनेपन के पवित्र रिश्ते को करके दरकिनार

कलंक के पन्नों में नाम अपना वह लिखा गया


जहाँ से चले थे आज भी हम कहीं खड़े हैं

वह सिंहासन पर चढ़कर सीधे खड़ा हो गया

पहला क़दम चला था मेरी उंगली पकड़कर 

 पल भर में कमबख्त यार मेरा बड़ा हो गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract