कमबख्त यार मेरा
कमबख्त यार मेरा
अंधेरी गलियों में भटक रहा था यार मेरा
हाथ पकड़कर उजाला मैंने ही दिखाया था
उसकी हर उड़ान को मैंने ही पंख लगाए थे
गगन के माथे पर नाम उसका लिखाया था
अपने आंसू छिपाकर उसके आंसू पोंछे थे
अपना हक़ भूलकर हक़ उसका दिलाया था
यही सोचकर कि हम तो फ़र्ज़ निभा रहे हैं
उसकी ख्वाहिशों को मंज़िल से मिलाया था
नादानी में हम अपना ही शिकार कर बैठे
सत्ता के नशे में गिरगिट रंग बदलने लगा
कतार में हम अब सबसे पीछे खड़े रहते हैं
चुराके नजरें हमसे बेशर्म निकलने लगा है
गलती हमारी थी इक गैर को यार समझ बैठे
भरोसा कैसे टूटे ज़ालिम हमको सीखा गया
अपनेपन के पवित्र रिश्ते को करके दरकिनार
कलंक के पन्नों में नाम अपना वह लिखा गया
जहाँ से चले थे आज भी हम कहीं खड़े हैं
वह सिंहासन पर चढ़कर सीधे खड़ा हो गया
पहला क़दम चला था मेरी उंगली पकड़कर
पल भर में कमबख्त यार मेरा बड़ा हो गया।