Anshu Shri Saxena

Drama

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Anshu Shri Saxena

Drama

माँ और मैं

माँ और मैं

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माँ, आज चैंलेंज है यह बताने का

कि मैं हूँ बिलकुल तुम जैसी

पर, मैं हूँ कहाँ तुम जैसी ? 


तुम थीं सहनशीलता की मूर्ति

और धैर्य की पराकाष्ठा

और मैं हूँ नादानियाों से भरी


बस जिसकी पहचान है अल्हडता 

तुम थीं इतनी कर्मठ कि 

पूरी बारात का भोजन पका देती 


और कहाँ मैं हूँ, मेहमानों के आगमन

से पहले, कुक ढूँढने निकल पड़ती 

तुम थीं शीतल मंद बयार सी


जो अपनी ख़ुशबू से मेरे जीवन का 

कोना कोना महका जातीं थीं

मेरी परेशानियों को यूँ ही


चुटकियों में सुलझा जाती थीं

जानती हो माँ, आज तुम नहीं

तो मैं भी वैसे ही जीने लगी हूँ

अपनी बेटी के लिये


जैसे कि तुम जीती थीं मेरे लिये

वही परेशानियाँ वही फ़िक्र 

कई बार सोचती हूँ कि काश

एकबार तुमसे दोबारा मिल पाती


तुम्हारी गोद में सिर रख

अपने सारे दर्द सारे ग़म पिघला लेती

जानती हूँ, यह कहाँ सम्भव है 


इसलिये तुम्हें अपने भीतर ही 

आत्मसात कर रखा है

हाँ माँ, शायद हूँ मैं कुछ कुछ तुम जैसी 


पर बन सकूँ तुम्हारी परछाईं 

यह वादा मैंने खुद से कर रखा है।


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