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साथ साथ

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कौन हो तुम ?

तुम हो....

मेरे होंठों पर स्मित हास से...

मेरी आँखों में चमकते जुगनुओं से..

मेरी बंद पलकों पर ठहरे मीठे से सपने से,

मेरे कानों में घुलती मिसरी से..

मेरे कपोलों पर दहकते अनार से,

या मेरे हृदय में उतरते प्रेम से...


कौन हो तुम ?

तुम हो....

सुवासित मस्त पवन के झोंके से,

इंन्द्रधनुष के चटकीले रंग से,

फागुन के मनमोहक फूलों से,

प्रेम की फुहार बरसाते सावन से !


मैं और तुम...

तुम गगन में

विचरते श्वेत बादल से,

और मैं हूँ तुमसे बनी साँवली सी छाया...

तुम हो किसी किनारे से धीर गम्भीर,

मैं किसी चंचल नदिया सी अधीर...

तुम हो भोर के उगते दिवाकर से,

मैं, अरुणिमा की रक्तिम आभा सी....

तुम हो किसी तरु के तने से सबल,

और मैं हूँ किसी लतर सी निर्बल... 


हम दोनों का साथ है....

दो धाराओं के पावन संगम जैसा,

अनंत अप्रतिम पलों की लड़ियों जैसा,

घूँट घूँट प्यास बुझाते जीवन जैसा,

जन्म जन्मातंर के अटूट बंधन जैसा !



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